छत्तीसगढ़ में शराब नीति: 2000 से 2025 तक का विस्तृत विश्लेषण और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव सामाजिक सरोकारों की कसौटी पर सरकारों की नीतियां
छत्तीसगढ़ में शराब की कीमतें: 2000 से 2025 तक का सफर

छत्तीसगढ़ में शराब की कीमतें: 2000 से 2025 तक का सफर - रुझान और नीतिगत प्रभाव
राजस्व की अनिवार्यता बनाम खपत नियंत्रण की चुनौती में मूल्यों का निर्धारण
रायपुर, 28 मई, 2025
छत्तीसगढ़ राज्य में शराब की कीमतों का निर्धारण हमेशा से आबकारी नीति का एक केंद्रीय स्तंभ रहा है, जिसका सीधा प्रभाव न केवल राज्य के खजाने पर पड़ता है, बल्कि उपभोक्ता व्यवहार और अवैध शराब व्यापार पर भी। वर्ष 2000 में राज्य के गठन से लेकर 2025 तक, विभिन्न सरकारों ने कीमतों को एक संवेदनशील उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है, जहाँ हर बड़े नीतिगत बदलाव का सीधा असर कीमतों पर देखा गया है।
2000-2007: निजी ठेकेदारों के अधीन मूल्य निर्धारण की अनिश्चितता
राज्य के शुरुआती वर्षों में, शराब की कीमतें बड़े पैमाने पर निजी ठेकेदारों द्वारा निर्धारित की जाती थीं। सरकार एक न्यूनतम या होलसेल मूल्य तय करती थी, लेकिन खुदरा स्तर पर, कीमतें अक्सर स्थानीय प्रतिस्पर्धा, मांग और ठेकेदारों द्वारा जोड़े गए मार्जिन के आधार पर भिन्न होती थीं।
मूल्य निर्धारण का तरीका: ठेकेदारों के बीच बोली लगाने की प्रतिस्पर्धा के कारण लाइसेंस शुल्क काफी अधिक होता था, जिसका बोझ वे अक्सर ओवर-रेटिंग के जरिए उपभोक्ताओं पर डालते थे।
कीमतों में भिन्नता: एक ही ब्रांड की बोतल की कीमत शहर के विभिन्न हिस्सों या ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकती थी।
अनुमानित वार्षिक वृद्धि: इस अवधि में कोई निर्धारित वार्षिक मूल्य वृद्धि पैटर्न नहीं था। कीमतें ठेकेदारों के मुनाफे और बाजार की गतिशीलता पर अधिक निर्भर करती थीं। ओवर-रेटिंग के कारण उपभोक्ताओं को अक्सर एमआरपी से 10-30% या उससे भी अधिक कीमत चुकानी पड़ती थी।
2007-2017: आंशिक सरकारी नियंत्रण और क्रमिक मूल्य वृद्धि
इस दशक में सरकार ने आंशिक नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया, जिससे मूल्य निर्धारण में कुछ हद तक एकरूपता लाने की कोशिश की गई।
मूल्य निर्धारण का तरीका: सरकारी उपक्रमों द्वारा संचालित दुकानों पर कीमतें तय होने लगीं, जबकि निजी दुकानों पर अभी भी कुछ भिन्नता बनी रही। सरकार ने वार्षिक आबकारी नीति के तहत दरों की घोषणा करना शुरू किया।
प्रमुख बदलाव:
नियमित, मध्यम वृद्धि: इस अवधि में, सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष औसत 5% से 10% की दर से शराब की कीमतों में नियमित वृद्धि लागू करना शुरू किया। यह वृद्धि आमतौर पर उत्पादन लागत में वृद्धि, मुद्रास्फीति और राज्य के बढ़ते राजस्व लक्ष्यों को दर्शाती थी।
ओवर-रेटिंग पर नकेल: सरकारी निगरानी बढ़ने से ओवर-रेटिंग में कमी आई, जिससे उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिली। हालांकि, यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुई थी।
उदाहरण (प्रतीकात्मक): यदि 2007 में किसी लोकप्रिय देसी शराब की बोतल ₹100 की थी, तो 2017 तक यह धीरे-धीरे बढ़कर लगभग ₹150-180 तक पहुंच सकती थी, हालांकि ये आंकड़े केवल प्रवृत्ति दर्शाते हैं।
2017-2018: पूर्ण सरकारी नियंत्रण और कीमतों में एकरूपता की लहर
1 अप्रैल, 2017 को छत्तीसगढ़ राज्य बेवरेजेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (CSBCL) द्वारा सभी दुकानों का सरकारीकरण एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने कीमतों के निर्धारण को पूरी तरह से बदल दिया।
मूल्य निर्धारण का तरीका: राज्य सरकार (CSBCL) ने सभी शराब की दुकानों के लिए एक समान, राज्यव्यापी मूल्य सूची जारी की। ओवर-रेटिंग की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो गई।
तत्काल प्रभाव:
सरकारीकरण के ठीक बाद, कई ब्रांडों की कीमतें स्थिर हो गईं या कुछ मामलों में मामूली कमी भी देखी गई, क्योंकि निजी ठेकेदारों का भारी मार्जिन हट गया।
हालांकि, कुछ महंगी प्रीमियम श्रेणियों में, सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए थोड़ी वृद्धि भी की ताकि अधिकतम लाभ सुनिश्चित हो सके।
सबसे बड़ा प्रभाव: ओवर-रेटिंग से मुक्ति मिली, जिससे उपभोक्ताओं को हमेशा एमआरपी पर ही शराब मिलने लगी।
2018-2023: कांग्रेस सरकार के अधीन क्रमिक वार्षिक वृद्धि
कांग्रेस सरकार ने सरकारीकरण की नीति जारी रखी और कीमतों के निर्धारण में भी एकरूपता बनी रही।
मूल्य निर्धारण का तरीका: CSBCL द्वारा ही प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए नई मूल्य सूची जारी की जाती रही।
प्रमुख बदलाव:
नियमित राजस्व वृद्धि: सरकार ने राजस्व लक्ष्यों को पूरा करने के लिए शराब की कीमतों में औसत वार्षिक 7% से 15% की वृद्धि जारी रखी। यह वृद्धि विभिन्न ब्रांडों और श्रेणियों के आधार पर भिन्न होती थी।
प्रीमियम ब्रांडों पर अधिक वृद्धि: आयातित और प्रीमियम भारतीय निर्मित विदेशी शराब (IMFL) ब्रांडों पर अक्सर अधिक वृद्धि लागू की जाती थी, जिससे सरकार को उच्च मार्जिन प्राप्त हो सके।
सेस/अतिरिक्त शुल्क: कोविड-19 महामारी के दौरान जैसे विशेष परिस्थितियों में, सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए विशेष उपकर (cess) या अतिरिक्त शुल्क लगाए, जिससे कुछ समय के लिए कीमतों में अस्थायी रूप से 10% से 25% तक की अतिरिक्त उछाल आई।
उदाहरण (प्रतीकात्मक): यदि कोई IMFL व्हिस्की 2018 में ₹800 की थी, तो 2023 तक वह ₹1000-1200 तक पहुंच सकती थी, जिसमें वार्षिक वृद्धि और कुछ विशेष शुल्क शामिल थे।
2024-2025: वर्तमान स्थिति और भविष्य की दिशा
वर्तमान में (मई 2025), शराब की कीमतों का निर्धारण पूरी तरह से CSBCL के माध्यम से राज्य सरकार के नियंत्रण में है।
मूल्य निर्धारण का तरीका: नई आबकारी नीति 2024-25 के तहत, शराब की कीमतों में नियमित वार्षिक वृद्धि जारी है। यह वृद्धि आमतौर पर मुद्रास्फीति दर से थोड़ी अधिक रखी जाती है ताकि राज्य का राजस्व वास्तविक रूप में बढ़ सके।
वर्तमान रुझान:
राजस्व अधिकतमकरण: सरकार का प्राथमिक ध्यान राजस्व को अधिकतम करने पर है, इसलिए कीमतों को इस तरह से निर्धारित किया जाता है कि राजस्व संग्रह में कमी न आए।
अवैध तस्करी पर नियंत्रण: कीमतों को पड़ोसी राज्यों की कीमतों के बहुत करीब रखने का प्रयास किया जाता है ताकि अंतर कम हो और अवैध तस्करी को हतोत्साहित किया जा सके।
कोई नाटकीय कमी नहीं: वर्तमान नीति में कीमतों में कोई नाटकीय कमी अपेक्षित नहीं है, जब तक कि सरकार शराबबंदी की दिशा में कोई बड़ा कदम न उठाए, जिससे खपत नियंत्रित हो और फिर शायद राजस्व में कमी को अन्य स्रोतों से पूरा किया जाए।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ में शराब की कीमतों की यात्रा निजी ठेकेदारों द्वारा निर्धारित अनिश्चित मूल्यों से लेकर पूर्ण सरकारी नियंत्रण के तहत एकरूपता और वार्षिक, राजस्व-आधारित वृद्धि तक की रही है। यह विकास राज्य के राजस्व लक्ष्यों और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने की आवश्यकता के बीच एक निरंतर चलने वाला संवाद है। भविष्य में भी, कीमतें राज्य की वित्तीय आवश्यकताओं, सामाजिक दबावों और पड़ोसी राज्यों में प्रचलित दरों से प्रभावित होती रहेंगी।
For More Updates Join Our Whatsapp Group
What's Your Reaction?






