
निठारी केस: आरोपियों की रिहाई और पीड़ितों का आक्रोश
2006 में क्या हुआ था?
साल 2006 में नोएडा के निठारी गांव में एक भयावह हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। सेक्टर-31 में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी (डी-5) के पीछे नाले से 19 मानव कंकाल बरामद हुए, जिनमें अधिकतर बच्चे और महिलाएं थीं। स्थानीय लोगों ने बच्चों के लगातार गायब होने की शिकायत की थी, लेकिन पुलिस की उदासीनता के कारण मामला उजागर होने में देरी हुई। दिसंबर 2006 में, दो स्थानीय निवासियों ने संदेह जताया कि पंढेर का नौकर सुरेंद्र कोली इन गायबियों में शामिल था। पुलिस ने कोठी की तलाशी ली, जहां नाले से हड्डियां और मानव अंगों से भरे 40 पैकेट मिले। इस मामले में पंढेर और कोली को गिरफ्तार किया गया, और सीबीआई ने जांच शुरू की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
30 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को बरी करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2023 के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई का मामला कोली के कबूलनामे पर आधारित था, जो बिना उचित प्रक्रिया के दर्ज किया गया। नाले से बरामद साक्ष्य को भी कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं माना गया, क्योंकि यह केवल आरोपियों की पहुंच वाले स्थान से नहीं था। सीबीआई और यूपी सरकार की 14 याचिकाएं खारिज कर दी गईं।

पीड़ित परिवारों का गुस्सा
पीड़ित परिवारों ने इस फैसले पर गहरा आक्रोश जताया। झब्बूलाल, जिनकी बेटी इस कांड में मारी गई, ने कहा कि पुलिस और जांच एजेंसियों ने लापरवाही बरती, जिसके कारण असली दोषी बच गए। उन्होंने पुलिस अधिकारियों और जजों को “मौत की सजा” देने की मांग की। परिवारों का कहना है कि साक्ष्यों की कमी और जांच में खामियों ने न्याय को दफन कर दिया।
जांच में खामियां
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की जांच पर सवाल उठाए। गिरफ्तारी के समय कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था, और साक्ष्य संग्रह में कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। ऑर्गन ट्रैफिकिंग की जांच भी अधूरी रही। इस कांड ने पुलिस और न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए।
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