
दुर्ग में धर्मांतरण और मानव तस्करी मामले में ननों की जमानत याचिका खारिज
दुर्ग, 29 जुलाई 2025:
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में धर्मांतरण और मानव तस्करी के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार दो ननों और एक अन्य व्यक्ति की जमानत याचिका को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने खारिज कर दिया है। अपराध क्रमांक 60/2025 में भारतीय न्याय संहिता की धारा 143 और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा 4 के तहत दर्ज इस मामले को गंभीर बताते हुए न्यायालय ने जमानत देने से इनकार किया। प्रकरण की जांच अभी जारी है, और अगली सुनवाई 8 अगस्त 2025 को होगी।
आरोपियों पर मानव तस्करी और धर्मांतरण का आरोप
दुर्ग जीआरपी थाने में 25 जुलाई 2025 को रवि निगम की शिकायत पर दर्ज प्रकरण में तीन आरोपियों—सिस्टर प्रीति मेरी, सिस्टर वंदना फ्रांसिस, और सुखमन मंडावी—को गिरफ्तार किया गया। शिकायत के अनुसार, नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियों को बहला-फुसलाकर और नौकरी का लालच देकर धर्मांतरण और मानव तस्करी के उद्देश्य से आगरा ले जाया जा रहा था। केस डायरी के आधार पर प्रथमदृष्ट्या आरोपियों की संलिप्तता पुष्ट हुई है।
न्यायालय का फैसला: जमानत खारिज
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, दुर्ग, द्विजेंद्र नाथ ठाकुर ने जमानत आवेदन पर सुनवाई के दौरान कहा कि अपराध की गंभीर प्रकृति, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की आशंका, और गवाहों पर दबाव की संभावना को देखते हुए जमानत देना उचित नहीं है। अभियोजन पक्ष ने भी जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपियों के छत्तीसगढ़ के स्थायी निवासी न होने के कारण उनके फरार होने की आशंका है।

आरोपियों के वकील का तर्क
आरोपियों के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सिस्टर प्रीति और सिस्टर वंदना धार्मिक संगठनों से जुड़ी हैं, जो मानव कल्याण और शांतिपूर्ण समाज के लिए कार्य करते हैं। उन्होंने दावा किया कि तीनों युवतियां बालिग हैं और उनके माता-पिता की सहमति से यात्रा कर रही थीं। अधिवक्ता ने यह भी कहा कि आरोप मनगढ़ंत और राजनीतिक दबाव में दर्ज किए गए हैं। उन्होंने मांग की कि युवतियों और उनके माता-पिता को कोर्ट में पेश किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने इन तर्कों को अपर्याप्त माना।
कोर्ट का रुख: अपराध की गंभीरता पर जोर
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल महिला होने के आधार पर जमानत का अधिकार स्वतः नहीं मिलता। भारतीय न्याय संहिता की धारा 143 और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 4 के तहत यह अपराध गैर-जमानती और गंभीर है, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कथित पीड़ितों की सहमति इस स्तर पर अप्रासंगिक है, क्योंकि यह अपराध गैर-राजीनामा योग्य है।
पुलिस और जांच की स्थिति
जीआरपी थाने के विवेचक राजेंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों ने जांच में सहयोग नहीं किया और गिरफ्तारी से बचने का प्रयास किया। केस डायरी के अनुसार, आरोपियों की प्रथमदृष्ट्या संलिप्तता पुष्ट हुई है। पुलिस ने सभी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए आरोपियों को 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश किया और उनका मेडिकल परीक्षण भी कराया, जिसमें कोई चोट नहीं पाई गई।
सियासी और सामाजिक विवाद
इस मामले ने छत्तीसगढ़ में सियासी तूल पकड़ लिया है। केरल से इंडिया गठबंधन का प्रतिनिधिमंडल आरोपियों से मिलने पहुंचा, जबकि बीजेपी और बजरंग दल इसे धर्मांतरण और मानव तस्करी का गंभीर मामला बता रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार नए धर्मांतरण कानून की तैयारी में है, जिसके बाद ऐसे मामलों पर और सख्ती की उम्मीद है। फिलहाल, प्रकरण की जांच जारी है, और सभी आरोपी केंद्रीय जेल में हैं।
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