
दुर्ग: धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी मामले में ननों की जमानत याचिका खारिज, विशेष न्यायालय में आवेदन का निर्देश
दुर्ग, 30 जुलाई 2025:
दुर्ग रेलवे स्टेशन पर नारायणपुर की तीन लड़कियों को बहलाकर आगरा ले जाने के मामले में तीनों आरोपियों—प्रीति मेरी, वंदना फ्रांसिस, और सुखमन मंडावी—की जमानत याचिका को अपर सत्र न्यायाधीश (एफ.टी.सी.), दुर्ग ने क्षेत्राधिकार की कमी के कारण निरस्त कर दिया। न्यायालय ने आवेदकों को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम, 2008 के तहत गठित विशेष न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह मामला धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी की आशंका से जुड़ा है, जिसने स्थानीय और राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचा रखा है।
मामले का विवरण और जमानत याचिका
25 जुलाई 2025 को रवि निगम की शिकायत के आधार पर जीआरपी थाना भिलाई में अपराध क्रमांक 60/2025, धारा 143 भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया। शिकायत में आरोप लगाया गया कि प्रीति मेरी (55 वर्ष, निवासी डिंडौरी, म.प्र.), वंदना फ्रांसिस (53 वर्ष, निवासी आगरा, उत्तर प्रदेश), और सुखमन मंडावी (निवासी नारायणपुर, छ.ग.) नारायणपुर की तीन लड़कियों को बहला-फुसलाकर आगरा ले जा रहे थे, जिससे धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी की आशंका जताई गई।
आवेदकों की ओर से अधिवक्ता श्री राजकुमार तिवारी ने जमानत याचिका (क्रमांक 1010/2025) में तर्क दिया कि प्रीति मेरी और वंदना फ्रांसिस कैथोलिक नन हैं, जो मानव कल्याण, शिक्षा, और स्वास्थ्य के लिए कार्य करती हैं। उन्होंने दावा किया कि तीनों लड़कियां स्वेच्छा से काम सीखने और रोजगार के लिए आगरा जा रही थीं, और वे पहले से ही ईसाई धर्म की अनुयायी थीं, इसलिए धर्म परिवर्तन का प्रश्न नहीं उठता। आवेदकों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, और उनकी गिरफ्तारी कुछ राजनीतिक संगठनों के दबाव में बलपूर्वक बयान के आधार पर हुई।
आपत्ति और लोक अभियोजक का तर्क
लोक अभियोजक श्री मेघेश्वर दिल्लीवार और आपत्तिकर्ता श्री नीरज सिंह राठौर ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आवेदकों ने लड़कियों को बिना किसी नियंत्रक प्राधिकारी को सूचित किए चुपके से आगरा ले जाने की कोशिश की, जो मानव तस्करी और धर्म परिवर्तन की आशंका को दर्शाता है। आपत्तिकर्ता ने कहा कि जमानत देने से इस तरह की गतिविधियां दोहराई जा सकती हैं और धार्मिक उन्माद को बढ़ावा मिल सकता है। लोक अभियोजक ने यह भी तर्क दिया कि धारा 143 बीएनएस के तहत अपराध राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम, 2008 की अनुसूची में शामिल है, और इसकी सुनवाई का क्षेत्राधिकार विशेष न्यायालयों को है, न कि दुर्ग के सत्र न्यायालय को।

न्यायालय का निर्णय
अपर सत्र न्यायाधीश श्री अनिष दुबे ने उभय पक्षों के तर्क सुनने के बाद पाया कि धारा 143 बीएनएस, पुराने भारतीय दंड संहिता की धारा 370 (मानव तस्करी) का समरूप है, जो NIA अधिनियम, 2008 की अनुसूची में शामिल है। बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक हालिया निर्णय (नागानी अकरम मोहम्मद शफी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2025) का हवाला देते हुए, न्यायालय ने माना कि धारा 143 बीएनएस को NIA अधिनियम के तहत माना जाएगा।
हालांकि, छत्तीसगढ़ राज्य और केंद्र सरकार की अधिसूचनाओं के अनुसार, दुर्ग जिला सत्र न्यायालय को NIA अधिनियम के तहत सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। क्षेत्राधिकार रायपुर, बिलासपुर, और अन्य विशेष न्यायालयों को प्रदान किया गया है। इस आधार पर, न्यायालय ने जमानत याचिका को बिना गुण-दोष के निरस्त कर दिया और आवेदकों को NIA अधिनियम के तहत गठित विशेष न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
पहले भी खारिज हो चुकी है याचिका
29 जुलाई 2025 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, दुर्ग ने भी आवेदकों की जमानत याचिका को यह कहते हुए निरस्त किया था कि यह सत्र प्रकरण है। इस दूसरी जमानत याचिका के खारिज होने से यह मामला और जटिल हो गया है। न्यायालय ने रिमांड प्रपत्र और केस डायरी को संबंधित थाना और विशेष न्यायालय को वापस भेजने का आदेश दिया।
स्थानीय और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस मामले ने दुर्ग और आसपास के क्षेत्रों में व्यापक चर्चा छेड़ दी है। कुछ सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस घटना को धार्मिक उन्माद और मानव तस्करी से जोड़ा है, जबकि आवेदकों के समर्थकों का कहना है कि यह सामाजिक सेवा और रोजगार के अवसर प्रदान करने का मामला है। पुलिस ने जनता से अफवाहों पर ध्यान न देने और जांच में सहयोग करने की अपील की है।
आवेदकों को अब रायपुर या बिलासपुर के विशेष न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन करना होगा। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, जीआरपी थाना भिलाई और अन्य संबंधित प्राधिकारी इसकी गहन जांच कर रहे हैं। इस मामले में अगली सुनवाई और जांच के परिणामों का इंतजार किया जा रहा है।
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