
दुर्ग-भिलाई जिले के प्राचीन शिव मंदिर: आस्था और वास्तुकला का अनुपम संगम
दुर्ग-भिलाई, छत्तीसगढ़ का एक ऐसा क्षेत्र है, जहां हर गांव और शहर के कोने-कोने में शिव मंदिरों की आध्यात्मिक आभा बिखरी हुई है। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो जिले की चारों दिशाओं में देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं। कहीं स्वयंभू शिवलिंग के रूप में तो कहीं साकार मूर्ति के रूप में भगवान शिव भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। पूर्व में देवबलौदा, पश्चिम में ग्राम नगपुरा, उत्तर में शिवकोकड़ी और सहसपुर, तो दक्षिण में रानीतरई से लगे कोही में स्वयंभू शिवलिंग के साथ ही धमधा में बूढ़ेश्वर शिव मंदिर और चतुर्भुजी मंदिर जैसे पवित्र स्थल भक्तों के लिए आस्था के केंद्र हैं। आइए, इन प्राचीन मंदिरों की विशेषताओं और मान्यताओं पर एक नजर डालें।
ग्राम नगपुरा: पंचरथ शैली का प्राचीन शिव मंदिर
ग्राम नगपुरा में पूर्वाभिमुख प्राचीन शिव मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। 12वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर पंचरथ योजना पर आधारित है। गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यह मंदिर वास्तुकला का एक श्रेष्ठ नमूना है, जो अपनी नक्काशी और संरचना के लिए जाना जाता है।

मान्यता: महाशिवरात्रि और सावन के प्रत्येक सोमवार को यहां जलाभिषेक के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। लोग हर तरह की मनोकामना, जैसे स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति के लिए यहां पूजन करते हैं।
सहसपुर: नागर शैली में फणी नागवंशी मंदिर
सहसपुर गांव में 13वीं-14वीं शताब्दी में फणी नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित प्राचीन शिव मंदिर नागर शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का आमालक और बलश पुक्त शिखर भाग इसकी विशेषता है। मंडप सोलह स्तंभों (षोडशखंभी) पर आधारित है, और गर्भगृह में जलधारी (योनिपीठ) पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है।

मान्यता: यूद्देश्वर महादेव के रूप में पूजे जाने वाले इस शिवलिंग के दर्शन से विवाह, संतान, स्वास्थ्य और कारोबार में सफलता की कामना पूरी होती है। भक्तों का मानना है कि यहां की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती।
कौही: खारून नदी के तट पर स्वयंभू शिवलिंग
पाटन ब्लॉक के ग्राम कौही में खारून नदी के तट पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर अपने स्वयंभू शिवलिंग के लिए विख्यात है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है। 25 फीट तक खुदाई के बावजूद इसका अंतिम छोर नहीं मिला।

मान्यता: इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से कन्याएं शीघ्र विवाह और योग्य वर की कामना, जबकि दंपति संतान प्राप्ति के लिए यहां आते हैं।
शिवकोकड़ी: आमनेर नदी के तट पर मात माले बाबा
आमनेर नदी के तट पर शिवकोकड़ी में स्थित प्राचीन शिव मंदिर की किवदंती लगभग पांच सौ साल पुरानी है। पुजारी बहादुर पुरी गोस्वामी के अनुसार, शिवलिंग की ऊंचाई जमीन से 10 फीट और गर्भगृह में 4 फीट है।

मान्यता: मात माले बाबा के नाम से प्रसिद्ध इस शिवलिंग को भक्त मनोकामना पूर्ण करने वाला मानते हैं। स्थानीय लोग शादी का पहला न्यौता भगवान शिव को अर्पित करते हैं। यह मंदिर विशेष रूप से विवाह और संतान की कामना के लिए प्रसिद्ध है।
धमधा: बूढ़ेश्वर और चतुर्भुजी मंदिर
धमधा में बूढ़ेश्वर शिव मंदिर और चतुर्भुजी मंदिर भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। 12वीं-13वीं शताब्दी में कलचुरी राजवंश द्वारा निर्मित ये मंदिर बलुआ पत्थर से बने हैं। खजुराहो शैली की नक्काशी से सजे इन मंदिरों में शिवलिंग भूगर्भ से ही प्रकट हुआ माना जाता है।

मान्यता: यहां भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं और हर भक्त की मुराद पूरी करते हैं। महिलाएं संतान प्राप्ति और कन्याएं योग्य वर की कामना के साथ यहां दर्शन के लिए आती हैं।
भिलाई जिले के ये प्राचीन शिव मंदिर न केवल आध्यात्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को भी दर्शाते हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला और मान्यताएं भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। महाशिवरात्रि और सावन के महीने में इन मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्साहित रहते हैं।
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